मंगलवार, 1 सितंबर 2020 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

आंखे जो दिख रही हैं🏵️🌺🌹

आंखे थोड़ी थोड़ी सी जो,
दिख रही हैं,
चाहत की इक नई दास्तां,
लिख रही हैं।।

शरारत भरी तो थी
पहले से इनमें
बस आये अमल में कैसे
ये तुमसे बेहतर
सिख रही हैं।।

हैं झपकती ये तो
कुछ अलग ही
कशिश होती है
लहरों पर जैसे कोई ये
कहानी लिख रही हैं।।

वक़्त का जमाने पर ये
नया निज़ाम आयद है
कमलेश' इनायत है तेरी
जितनी भी दिख रही हैं।।

कमलेश वर्मा' कमलेश🌹
(करोना काल में मास्क )

रविवार, 5 जुलाई 2020 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

तेरे शहर के....🌹❤️🦋🇮🇳

तेरे शहर के परिंदे भी बेवफ़ा निकले
तुम तो निकले पर ये बे वजह निकले।।

छोड़ दी हमने तेरे मुहल्ले की वो गली,
ये तुम्हारे खैरख्वाह हर जगह निकले।।

बड़ा सकून था तेरी यादों के महल में
हर तरफ सहरा ही मिला जहां निकले।।

देख कर चल दिए ज़मीं पर पैरों के निशां
दस्तक सुनी दिल ने तो तुम यहां निकले।।

'कमलेश' तम्मना रही अधूरी की अधूरी मेरी,
जान तो निकली मगर अरमां कहां निकले।।

कमलेश वर्मा, कमलेश🌹7/2020
मंगलवार, 26 मई 2020 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

शतरंज की बाज़ी💐

आज की स्वरचित रचना आप सब के लिए🌹😍🦋❤️

शतरंज की ये बाज़ी,
ना हम पर लगाइए।
क्या कर रहे हैं आप❓
अब देश को बताईये।

चल रही हैं ट्रेन,बसें,
ऑटो बे शुमार तो 
ये सड़कों पर कौन है,
जरा समझाइये❓

स्टेशनों,बस अड्डों पर खड़ा
इतना बड़ा हजूम है,
हज़ूर हमको/सबको भी,
हमारे घर पहुंचाइये।

हो सकता किसी नज़र में हों,
हम  वोट की फसल ,
खूब काट लेना फिर कभी! 
पहले हमें बचाइये।

महामारी से तो हो सकता है,
बच जाएंगे हम,
सरकार,मजबूर,मजदूर को,अब
ना मुद्दा बनाइये।

क्यों ? नज़र नहीं आता दर्द,
किसी रक़ीब को,
'कमलेश' ज़ख्मों पर कोई तो,
 मरहम प्यार का लगाइए।

कमलेश वर्मा 'कमलेश🌹
#labourmigration
बुधवार, 20 मई 2020 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

चल रहा है...!!

 चल रहा है तू तू मैं मैं का सिलसिला।
इनको उनसे ,उनको इनसे है शिकवा गिला।
तुम्हारी इस बेहूदा 
तकरार से
हम मजबूर मज़दूरों को
क्या मिला।

जो करना है वो 
सही जल्दी करो
हौसले से भरा हाथ
सर पर धरो।

राजनीति की रोटियां
सेंक लेना
मौके कल भी बहुत आएंगे,
इस वक़्त दो बस 
बुझा चूल्हा जला।

घर से बेघर हुए 
अपने घर के लिए, 
बचाने को घर में थे
जो जलते दिए।
हम ही हैं आज 
जिनको कहते हो काफ़िला।

पता है ये दुःख भी
कट जाएगा
पर ये जीवन दो
भागों में बंट जाएगा।
गर बन्द ना हुआ यूँ उजड़ने का सिलसिला।

सुखी होने का होने,
लगा अहसास था।
नौकरी,बीवी, बच्चे,
पैसा सब पास था।
तभी महामारी ने दिया सब मिट्टी में मिला।

सारे विश्व में है विपदा पड़ी
है युक्ति, संयम, धैर्य की घड़ी
तुम  ना उधेड़ो मेरे ज़ख्म को 
मुश्किल से वक़्त ने है जिसको   सिला।

अब दिख रहा कितना
बड़ा सैलाब है।
सरकारों की नीतियों का
ये अज़ाब है।
कमलेश' क्यूँ हक़ इनका ना अब तक  मिला।

कमलेश वर्मा 🌹कमलेश,🌹